सूक्तयः
सूक्तयः
१ यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता ।
जहाँ नारियों की पूजा होती है वहाँ देवता रमते हैं।
२ शठे शाठ्यं समाचरेत् ।
दुष्ट के साथ दुष्टता का ही व्यवहार करना उचित है।
३ आचार्य देवो भव।
आचार्य को देवता मानो।
४ सन्तोष एव पुरुषस्य परं निधानम् .।
सन्तोष ही मनुष्य का श्रेष्ठ धन है।
५ जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।
हमारी माता और जन्मभूमि स्वर्ग से भी अधिक श्रेष्ठ है।
६ सर्वे गुणाः कांचनमाश्रयन्ते।
सभी गुण धन का आश्रय लेते हैं।
७ संघे शक्तिः कलौयुगे।
कलियुग में संघ में ही शक्ति होती है।
८ शरीरमाद्यं खलु धर्म साधनम्।
शरीर को स्वस्थ रखो क्यों कि यही धर्म का साधन है।
९ परोपकाराय सतां विभूतयः।
सज्जनों के सभी कार्य परोपकार के लिये ही होते हैं।
१० उद्योगिनं पुरुष सिंहमुपैति लक्ष्मीः।
लक्ष्मी सिंह के समान उद्योगी पुरुष के पास जाती है।
११ सत्यमेव जयते नानृतम्।
सत्य की ही जीत होती है । झूट की नहीं।
१२ विद्या विहीनः पशुः।
विद्याहीन व्यक्ति पशु है।
१३ आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महारिपुः।
आलस्य ही मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है।
१४ पुराणमित्येव न साधु सर्वम्।
सब पुराना ही अच्छा नहीं होता।
१५ बुभूक्षितः किं न करोति पापम्।
भूखा व्यक्ति कौन सा पाप नहीं करता।
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