Wednesday, April 25, 2007

शास्त्री नित्यगोपाल कटारे विभिन्न कार्यक्रमों में

अनुभूति में शास्त्री नित्यगोपाल कटारे

Sunday, April 01, 2007

सौ०का० इला चि० अनुभव विवाहावसरे

सौ०का० इला चि० अनुभव विवाहावसरे शुभकामना संदेशः

श्रूयताम्
अनुभव इला विवाह प्रणय अनुबन्धम्।
शुभं भवतु ॠषि कृत प्राचीन प्रबन्धम्।।

प्राचीन भारतीय ॠषियों द्वारा अनुप्रणीत सामाजिक प्रबन्धन के अनुसार इला और अनुभव का विवाह शुभ और कल्याण प्रद हो।
श्रूयताम्
भारतीय संस्कृत्यनुसारं शुचि षोडष संस्कारम्।
श्रेष्ठाश्रमं गृहस्थ आश्रमं सदाचरण व्यवहारम्।
सप्तपदी मैत्री कृतवन्तौ सप्त जन्म सम्बन्धम्।।

भारतीय संस्कृति में पवित्र सोलह संस्कार एवं चार आश्रमों की व्यवस्था देकर सदाचरण और सद्व्यवहार की प्रेरणा दी गई है। जिसमें गृहस्थ आश्रम को सर्व श्रेष्ठ माना गया है। इस आश्रम में प्रवेश करते समय सात परिक्रमा साथ साथ करके पति पत्नी सात जन्मों के संबन्ध तय करते हैं।
श्रूयताम्
मंगल कलशः मृत्तिका दीपं तोरण द्वार पुनीतम्।
हरित्पत्र मण्डपाच्छदनं मन्त्रं मंगल गीतम्।
शुभं हरिद्रा युक्त चन्दनं व्याप्तं दिव्य सुगन्धम्।।
विवाह समारोह में मंगल कलश मिट्टी के दिये पवित्र तोरण द्वार बनाकर हरे पत्तों से युक्त मण्डप के नीचे मन्त्रोच्चार और मधुर गीतों से वातावरण उल्लासमय हो गया है।शुभ हल्दी युक्त चन्दन की सुगन्ध सारे वातावरण में व्याप्त है।
श्रूयताम्
स्थितौ नव वर वधू मण्डपे नीत्वा निज जयमालाम्।
राम जानकी वत् शोभेते जनकपुरी मिथिलायाम्।
दृष्ट्वा संमनोहरं दृश्यं प्राप्नुवन्ति आनन्दम्।।


इस पवित्र मण्डप में अपने हाथों में जयमाला लिये खड़े ये नव युगल उसीतरह शोभित हो रहे हैं जैसे जनकपुरी मिथिला में राम और जानकी शोभायमान हैं। ऐंसे मनोहर दृश्य को देखकर समस्त एकत्रित बन्धु बान्धव आनन्दित हो रहे हैं।
श्रूयताम्
माता पिता प्रवीण पूर्णिमा सक्सेना परिवारम्।
इष्टमित्र चातिथिभिर्सहितं प्रमुदति बारं बारम्।
सर्वे कन्यादानं कृत्वा प्राप्नुवन्ति आनन्दम्।.।

कन्या के माता पिता श्रीमती पूर्णिमा एवं श्री प्रवीण सकसेना का परिवार अपने इष्टमित्र और मेहमानों के साथ कन्यादान करके आनन्दित हो रहे हैं।
श्रूयताम्
सर्वैषु दानेसु उत्तमं उक्तं कन्यादानम्।
अन्यं दानं क्षणं क्षीयते धनमन्नं सम्मानम्।
वरस्य पिता श्री अनिलः शर्मा प्रहसति मन्दं मन्दम्।।
समस्त प्रकार के दानों में कन्यादान को श्रेष्ठ कहा गया है।क्यों कि अन्न धन आदि सभी दान बहुत शीघ्र समाप्त हो जाते हैं जबकि कन्यादान से कुल बढ़ता ही जाता है। इस प्रकार का श्रेष्ठ दान प्राप्त करके वर के पिता श्री अनिल शर्मा जी मन्द मन्द मुस्कुरा रहे हैं।
श्रूयताम्
खलु भवेत् नव युगल जीवने सत्यं ज्ञान प्रकाशः।
वर्धयेन्नित्यं परस्परं प्रेम त्याग विश्वासः।
काम क्रोध लोभ संमोहाः प्रमुच्येत् भव बन्धम्।।
मैं भगवान से प्रार्थना करता हूँ कि इस नव दम्पति के जीवन में सत्य और ज्ञान का प्रकाश हो और हमेशा परस्पर प्रेम त्याग और विश्वास बढ़ता रहे। ये काम क्रोध लोभ मोह आदि बन्धनों से मुक्त होकर अपने जीवन का लक्ष्य प्राप्त करें।
शुभाकांक्षी
शास्त्री नित्यगोपाल कटारे